SONAMM KATARIEA JOURNALIST/BIG OPINION/DAILY INDIATIMES DIGITAL/10 JULY 2025
नमस्कार Main सोनम कटारिया आपका स्वागत करती हूं आप देख रहे हैं डेली इंडिया टाइम्स.. हिन्दी मराठी की जंग शर्मनाक है और लोकतंत्र को कलंकित करती है.. मनसे के राज ठाकरे शुरू से उनकी राजनीति या विचारधारा तथाकथित रही है और अभी जिस तरह से महाराष्ट्र और मुंबई में हिंदी मराठी को भड़काया जा रहा है उससे अनेक सवाल खड़े होते हैं..यह आग दूसरे राज्यों में जाए उससे पहले इस दिशा में कड़ी कार्रवाई और सकारात्मक
कदम उठाना जरूरी हो गया है..
कि यह विवाद अब आम लोगों के बीच के लिए एक समस्या जैसा दिखाई पड़ रहा है। महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी भाषा को लेकर छिड़ा विवाद सीमाओं को लांगकर देश भर में अब राजनीतिक मुद्दा बन रहा है। ऑफरिंग अ यूनिक ब्लेंड फ्यूचर रेडी कोर्सेस एंड एक्सपीरियंस बेस्ड लर्निंग सेज यूनिवर्सिटी इज वेयर वी ट्रांसफॉर्म पैशन इन प्रोफेशन। दो दशक बाद ठाकरे परिवार यानी राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आए और विषय था मराठी अस्मिता। मराठी अस्मिता को बचाने के नाम पर यह ठाकरे बंधु एक हो गए। इन दोनों के एक होने के साथ ही राजनीतिक समीकरण भी बदला और अपनी राजनीतिक विरासत बचाने के लिए एक बड़ा बयान इस तरह से दिया गया कि अब वह बयान एक फसाद का रूप ले रहा है।
एक राज्य की राजनीति में बदलाव को लेकर फसाद शुरू हुआ है और दूसरा भाषा को लेकर राज्य में आग लगी हुई है। वाद-विवाद प्रतिक्रियाएं एक के बाद एक दिखाई पड़ रही हैं। महाराष्ट्र में हिंदी भाषा विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब राज्य सरकार के शिक्षा विभाग ने स्कूलों में कक्षा एक से तीसरी तक भाषा के रूप में हिंदी सिखाने का फैसला किया। अब तक राज्य में मराठी और अंग्रेजी ही पहली कक्षा से सिखाई जाती थी। जैसे ही यह फैसला सामने आया, महाराष्ट्र की सियासत गरमा गई। विवाद शुरू होते ही पहले तो सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार जो नई शिक्षा नीति लेकर आई है उसी में त्रिभाषा सूत्र यानी पहली कक्षा से ही तीन भाषाएं पढ़ाने का प्रावधान है। फिर भाषा और शिक्षा के कई विशेषज्ञों ने इसका विरोध भी किया और कहा कि पहली कक्षा के बच्चों के लिए यह आसान नहीं होगा। शिवसेना जो उद्धव ठाकरे की है और मनसे जैसी पार्टियों ने इसका विरोध किया। शिक्षा से जुड़े कई संगठनों और राजनीतिक दलों ने भी आंदोलन शुरू कर दिए। इसके बाद राज्य सरकार ने एक कदम पीछे खींचते हुए हिंदी का अनिवार्य होना रद्द कर दिया। यह भी कहा गया कि अगर कुछ स्टूडेंट्स तीसरी भाषा चुनना चाहते हैं तो वह चुन सकते हैं। लेकिन इससे भी विरोध पर कोई असर नहीं दिखाई पड़ा। सरकार भले ही बैकफुट पर चली गई इस मुद्दे पर लेकिन विवाद जस का तस। भाषा के मुद्दे ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक अहम तस्वीर पेश की। लेकिन इसके ठीक बाद जैसे ही ठाकरे ब्रदर्स एक साथ आए मराठी को लेकर मामला गरमा गया। इस बीच एक बयान भी सामने आया कि बेवजह किसी को मत मारो। लेकिन अगर ज्यादा कोई नाटक करता है तो उसके कान के नीचे बजाओ। अगली बार जब किसी को पीटो तो उसका वीडियो मत बनाओ।
आप कल्पना करेंगे कि यह बयान राज ठाकरे ने दिया। इस बयान के बाद से जो तूफान आया वह इन तस्वीरों में दिखाई पड़ रहा है। लोग सड़कों पर हैं, भिड़ते दिख रहे हैं, लड़ते दिख रहे हैं। देश की राजनीति में राज ठाकरे के इस बयान ने एक नया तूफान, एक नई बहस को जन्म दे दिया है। इसको लेकर कई जगह मारपीट के मामले भी सामने आए। एक्शन भी हो रहे हैं। लेकिन सवाल यह कि यह आग कब बुझेगी? इस पूरे मामले पर महाराष्ट्र को सुलगता देख सीएम देवेंद्र फडनवीस ने सख्त कदम उठाने की बात कही और इस पूरे मामले में सभी को चेताया। जरा सुनिए सीएम देवेंद्र फडनवीस का बयान। मैं बहुत स्पष्ट शब्दों में बताना चाहता हूं। महाराष्ट्र में मराठी भाषा का अभिमान रखना यह कोई गलत बात नहीं है। लेकिन भाषा के चलते अगर कोई गुंडागर्दी करेगा तो इसको हम सहन नहीं करने वाले। कोई अगर भाषा के आधार पर मारपीट करेगा तो यह सहन नहीं किया जाएगा। जिस प्रकार की घटना हुई है उसके ऊपर पुलिस ने एफआईआर भी किया और कारवाई भी की है और आगे भी अगर कोई इस प्रकार से भाषा का विवाद करेगा तो उसके ऊपर कानूनन कारवाई होगी। हमको हमारी मराठी का अभिमान है। लेकिन भारत की किसी भी भाषा के साथ इस प्रकार से अन्याय नहीं किया जा सकता। यह भी हमको ध्यान में रखना पड़ेगा और मुझे तो कभी-कभी आश्चर्य होता है कि यह लोग अंग्रेजी को गले लगाते हैं और हिंदी के ऊपर विवाद करते हैं। यह कौन सा विचार है और यह किस प्रकार की कारवाई है? इसलिए इस प्रकार से जो लोग ऐसा कानून हाथ में लेंगे इनके साथ कड़ी कारवाई की जाएगी। बयानों की झड़ी लगती रही और इस भाषा के विवाद में एंट्री हो गई बीजेपी नेता नीतीश राणे की। उन्होंने सीधा हमला बोला सीधा चैलेंज दिया। मारा ही गया है ना? एक हिंदू को मारा गया है ना? एक हिंदू को मारा गया है। तो मुझे बोलना है कि इतनी हिम्मत जाके नल बाजार और मोहम्मद अली रोड में दिखाओ ना। वह जो दाढ़ी वाली और गोल टोपी वाले क्या मराठी में बात करते हैं क्या? शुद्ध मराठी में बात करते हैं क्या? उधर जाने की उनको कान के नीचे बजाने की हिम्मत नहीं है। जावेद अख्तर क्या मराठी में बात करता है क्या?
आमिर खान क्या मराठी में गाता है क्या? उधर उसके मुंह से मराठी निकालने की हिम्मत नहीं है। ये गरीब हिंदू को क्यों मारने की हिम्मत कर रहे हो? यह सरकार हिंदू ने बिठाई है। हिंदुत्व विचार की सरकार है। इसलिए इस तरह की कोई भी अगर कोई हिम्मत करेगा तो हमारी सरकार भी तीसरी आंख खोलेगी। इतना मैं कहना चाहता हूं। इस विवाद ने सिर्फ महाराष्ट्र में नेताओं के बीच बयानबाजी का दौर नहीं शुरू किया। यह आग दिल्ली होते हुए बिहार और झारखंड तक पहुंच गई। झारखंड के गोडा से भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे पर बयान दिया। जरा सुनिए निशिकांत दुबे का बयान। हमारे पैसे पर पल रहे हो। तुम कौन सा टैक्स जाते हो? कौन सी इंडस्ट्री है तुम्हारे पास? माइंस हमारे पास है। झारखंड के पास है, छत्तीसगढ़ के पास है, मध्य प्रदेश के पास है, उड़ीसा के पास है। आपके पास कौन सी माइंस है? रिफाइनरी यदि Reliance ने बैठाई या एसआर ने रिफाइनरी बैठाई तो वह गुजरात में रिफाइनरी बैठाई है। सारी इंडस्ट्री जो है सेमीकंडक्टर की भी इंडस्ट्री है तो गुजरात में आ रही है। आप जो है लाटसाही कर रहे हो और ऊपर से जो है आप हमारा दोहन करके शोषण करके टैक्स पेयर करते हो और यदि आप में ज्यादा हिम्मत है तो हिम्मत है तो आप हिंदी भाषी को मारते हो तो उर्दू भाषी को भी मारो। तमिलियन को भी मारो। आप जो है तेलुगु वाले को भी मारो। आप जो इस तरह की घटिया हरकत कर रहे हो और मैंने हमेशा कहा है कि जब अपने घर में हो, महाराष्ट्र में हो यदि बहुत बड़े बॉस हो तो चलो बिहार चलो उत्तर प्रदेश चलो तमिलनाडु तुमको पटक-पटक के मारेंगे। यह एनर्की जो है नहीं चलेगी। हम मराठी का सम्मान करते हैं। मराठी एक आदरणीय भाषा है। बीजेपी सांसद के बयान पर शिवसेना के सांसद संजय राउत ने पलटवार किया। उन्होंने कहा कि यह दुबे है कौन? मैं यहां के हिंदी भाषी नेताओं से अपील करता हूं कि दुबे के बयान की निंदा करें। इससे पहले उद्धव ठाकरे ने विवादित टिप्पणी को लेकर निशिकांत को लकड़बग्गा भी करार दिया था। संजय राउत का जरा बयान सुनिए कि दुबे है कौन? दुबे को क्या अथॉरिटी दिया है क्या यहां के हिंदी भाषिकों ने? वहां बैठकर आप बात करते हो। यहां के जो हिंदी भाषिक नेता है, मैं उनसे अपील करता हूं। दुबे का जो वक्तव्य है उसका निषेध करो। आप धिक्कार करो उसका। बताइए आप झूठ बोल रहे हो तो मैं कहूंगा कि आप महाराष्ट्र की मिट्टी में मिलजुल गए हो। कौन है दुबे आपका? आपका दुबे कौन लगता है ये? फालतू आदमी है ये। ये बोगस डिग्री जैसा गुरु वैसा चेला है। मुझे आश्चर्य है महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उनके पूरे कैबिनेट का एक आदमी भारतीय जनता पार्टी का सांसद वहां बैठकर महाराष्ट्र के बारे में, मराठी आदमी के बारे में, मराठी मानुष के बारे में घटिया बातें करता है और आप चुप बैठे हो। आप कौन से मुख्यमंत्री हो? आपको छत्रपति शिवाजी महाराज और बालासाब ठाकरे का नाम लेने का अधिकार नहीं है भाई। एकनाथ शिंद अपने आप को डुप्लीकेट शिवसेना का नेता मानता है ना? दाढ़ी पे हाथ घुमाते फिरता है। निकाल दो दाढ़ी आपकी। अगर दाढ़ी में दम नहीं है ना तो दाढ़ी काट कर घूम रहे तो हम आपकी दाढ़ी काट देंगे। क्या चल रहा है आपका? वहीं इस बीच बीजेपी के सांसद दिनेश लाल निरहुआ की भी तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। उनका बयान भी सुनने वाला है। मुझे लगता है कि यह विवाद नहीं होना चाहिए। हिंदी जो है वो माध्यम है कम्युनिकेशन का और राष्ट्रीय भाषा इसीलिए है कि यहां अलग-अलग राज्य में लोग अलग-अलग भाषा बोलते हैं। सबकी अपनी-अपनी मातृभाषा है। जैसे मेरी भोजपुरी है, किसी की मराठी है, किसी की तमिल है, तेलुगु है, कन्नड़ है, मलयालम है, बंगाली है, उड़िया है। अलग-अलग क्षेत्रीय भाषा है। पर हमको आपस में कम्युनिकेट करने के लिए कम्युनिकेशन के लिए हिंदी हमारा एक ऐसा माध्यम है, ऐसी भाषा है जिससे पूरे देश के लोग एक दूसरे को समझ पाते हैं, बोल पाते हैं। इसके लिए है। तो इस पे किसी प्रकार का विवाद नहीं होना चाहिए और जो लोग कर रहे हैं इसके ऊपर राजनीति वो गलत कर रहे हैं। यह राजनीति नहीं होनी चाहिए। भाषा विवाद का जहर देश के लिए खतरे से कम नहीं और इसका असर उन लोगों पर ज्यादा हो रहा है जो महाराष्ट्र में अपनी रोजीरोटी के लिए गए हैं। राज्य में एक बड़ी हिंदी भाषा आबादी होने के बावजूद हिंदी को लेकर विरोध का अक्सर इस तरह से खड़े हो जाना निश्चित तौर पर चिंताजनक है। इसकी कोई वजह वैसे नहीं नजर आती लेकिन हां सिर्फ राजनीति और राजनीतिज्ञों की वजह से यह मराठी पहचान वाला जो विवाद है यह खड़े होता दिखाई पड़ता है। स्थानीय राजनीतिक दल इसे मुद्दा बना रहे हैं और महाराष्ट्र में यह हिंदी विरोध आज की बात नहीं बल्कि 50 के दशक से चली आ रही है। यह समस्या यह विवाद यह भाषा को लेकर तकरार आज की नहीं है। लेकिन अब बड़ी बात यह है कि वो बड़े लोग जो कि हिंदी भाषी राज्यों से जाकर वहां मजबूत स्थिति में दिखाई पड़ते हैं फिर चाहे वो अभिनेता हो चाहे पॉलिटिशियंस हो चाहे फिर कोई बड़ा उद्योगपति उनसे सवाल नहीं होता उनके ऊपर यह प्रेशर नहीं डाला जाता कि आप हिंदी बोलिए या मराठी बोलिए। लेकिन हिंदी भाषी राज्यों से गए वो मजदूर, वो आम आदमी जो अपनी जीविका के लिए, अपनी रोजीोटी के लिए महाराष्ट्र की जमीन पर गया है, वहां पर उसे इस तरह की चीजों का सामना करना पड़ता है। यही सबसे बड़ी विडंबना है। महाराष्ट्र एक बार फिर सुलग रहा है। महाराष्ट्र में एक बार फिर मराठी बनाम हिंदी की लड़ाई दिखाई पड़ रही है। यह विवाद आम लोगों के बीच उन राजनीतिज्ञों ने छेड़ा है या यूं कहें कि छोड़ा है कि यह विवाद अब आम लोगों के बीच के लिए एक समस्या जैसा दिखाई पड़ रहा है। महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी भाषा को लेकर छिड़ा विवाद सीमाओं को लांघकर देश भर में अब राजनीतिक मुद्दा बन रहा है। ऑफरिंग अ यूनिक ब्लेंड फ्यूचर रेडी कोर्सेस एंड एक्सपीरियंस बेस्ड लर्निंग सेज यूनिवर्सिटी इज वेयर वी ट्रांसफॉर्म पैशन प्रोफेशन। दो दशक बाद ठाकरे परिवार यानी राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आए और विषय था मराठी अस्मिता। मराठी अस्मिता को बचाने के नाम पर यह ठाकरे बंधु एक हो गए। इन दोनों के एक होने के साथ ही राजनीतिक समीकरण भी बदला और अपनी राजनीतिक विरासत बचाने के लिए एक बड़ा बयान इस तरह से दिया गया कि अब वह बयान एक फसाद का रूप ले रहा है। एक राज्य की राजनीति में बदलाव को लेकर फसाद शुरू हुआ है और दूसरा भाषा को लेकर राज्य में आग लगी हुई है। वाद-विवाद प्रतिक्रियाएं एक के बाद एक दिखाई पड़ रही हैं। महाराष्ट्र में हिंदी भाषा विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब राज्य सरकार के शिक्षा विभाग ने स्कूलों में कक्षा एक से तीसरी तक भाषा के रूप में हिंदी सिखाने का फैसला किया। अब तक राज्य में मराठी और अंग्रेजी ही पहली कक्षा से सिखाई जाती थी। जैसे ही यह फैसला सामने आया, महाराष्ट्र की सियासत गमा गई। विवाद शुरू होते ही पहले तो सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार जो नई शिक्षा नीति लेकर आई है उसी में त्रिभाषा सूत्र यानी पहली कक्षा से ही तीन भाषाएं पढ़ाने का प्रावधान है। फिर भाषा और शिक्षा के कई विशेषज्ञों ने इसका विरोध भी किया और कहा कि पहली कक्षा के बच्चों के लिए यह आसान नहीं होगा। शिवसेना जो उद्धव ठाकरे की है और मनसे जैसी पार्टियों ने इसका विरोध किया। शिक्षा से जुड़े कई संगठनों और राजनीतिक दलों ने भी आंदोलन शुरू कर दिए। इसके बाद राज्य सरकार ने एक कदम पीछे खींचते हुए हिंदी का अनिवार्य होना रद्द कर दिया। यह भी कहा गया कि अगर कुछ स्टूडेंट्स तीसरी भाषा चुनना चाहते हैं तो वह चुन सकते हैं। लेकिन इससे भी विरोध पर कोई असर नहीं दिखाई पड़ा। सरकार भले ही बैकफुट पर चली गई इस मुद्दे पर लेकिन विवाद जस का तस। भाषा के मुद्दे ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक अहम तस्वीर पेश की। लेकिन इसके ठीक बाद जैसे ही ठाकरे ब्रदर्स एक साथ आए मराठी को लेकर मामला गरमा गया। इस बीच एक बयान भी सामने आया कि बेवजह किसी को मत मारो। लेकिन अगर ज्यादा कोई नाटक करता है तो उसके कान के नीचे बजाओ। अगली बार जब किसी को पीटो तो उसका वीडियो मत बनाओ। आप कल्पना करेंगे कि यह बयान राज ठाकरे ने दिया। इस बयान के बाद से जो तूफान आया वह इन तस्वीरों में दिखाई पड़ रहा है। लोग सड़कों पर हैं, भिड़ते दिख रहे हैं, लड़ते दिख रहे हैं। देश की राजनीति में राज ठाकरे के इस बयान ने एक नया तूफान, एक नई बहस को जन्म दे दिया है। इसको लेकर कई जगह मारपीट के मामले भी सामने आए। एक्शन भी हो रहे हैं। लेकिन सवाल यह कि यह आग कब बुझेगी? इस पूरे मामले पर महाराष्ट्र को सुलगता देख सीएम देवेंद्र फडनवीस ने सख्त कदम उठाने की बात कही और इस पूरे मामले में सभी को चेताया। जरा सुनिए सीएम देवेंद्र फडनवीस का बयान। मैं बहुत स्पष्ट शब्दों में बताना चाहता हूं। महाराष्ट्र में मराठी भाषा का अभिमान रखना यह कोई गलत बात नहीं है। लेकिन भाषा के चलते अगर कोई गुंडागर्दी करेगा तो इसको हम सहन नहीं करने वाले। कोई अगर भाषा के आधार पर मारपीट करेगा तो यह सहन नहीं किया जाएगा। जिस प्रकार की घटना हुई है उसके ऊपर पुलिस ने एफआईआर भी किया और कारवाई भी की है और आगे भी अगर कोई इस प्रकार से भाषा का विवाद करेगा तो उसके ऊपर कानून कारवाई होगी। हमको हमारी मराठी का अभिमान है। लेकिन भारत की किसी भी भाषा के साथ इस प्रकार से अन्याय नहीं किया जा सकता। यह भी हमको ध्यान में रखना पड़ेगा। और मुझे तो कभी-कभी आश्चर्य होता है कि यह लोग अंग्रेजी को गले लगाते हैं और हिंदी के ऊपर विवाद करते हैं। यह कौन सा विचार है और यह किस प्रकार की कारवाई है इसलिए इस प्रकार से जो लोग ऐसा कानून हाथ में लेंगे इनके साथ कड़ी कारवाई की जाएगी। बयानों की झड़ी लगती रही और इस भाषा के विवाद में एंट्री हो गई बीजेपी नेता नीतीश राणे की। उन्होंने सीधा हमला बोला सीधा चैलेंज दिया। मारा ही गया है ना एक हिंदू को मारा गया है ना एक हिंदू को मारा गया है तो मुझे बोलना है कि इतनी हिम्मत जाके नल बाजार और मोहम्मद अली रोड में दिखाओ ना। वो जो दाढ़ी वाले और गोल टोपी वाले क्या मराठी में बात करते हैं क्या? शुद्ध मराठी में बात करते हैं क्या? उधर जाने की उनको कान के नीचे बजाने की हिम्मत नहीं है। जावेद अख्तर क्या मराठी में बात करता है क्या? आमिर खान क्या मराठी में गाता है क्या? उधर उसके मुंह से मराठी निकालने की हिम्मत नहीं है। ये गरीब हिंदू को क्यों मारने की हिम्मत कर रहे हो? यह सरकार हिंदू ने बिठाई है। हिंदुत्व विचार की सरकार है। इसलिए इस तरह की कोई भी अगर कोई हिम्मत करेगा तो हमारी सरकार भी तीसरी आंख खोलेगी। इतना मैं कहना चाहता हूं। इस विवाद ने सिर्फ महाराष्ट्र में नेताओं के बीच बयानबाजी का दौर नहीं शुरू किया। यह आग दिल्ली होते हुए बिहार और झारखंड तक पहुंच गई। झारखंड के गोडा से भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे पर बयान दिया। जरा सुनिए निशिकांत दुबे का बयान। हमारे पैसे पर पल रहे हो। तुम कौन सा टैक्स जाते हो? कौन सी इंडस्ट्री है तुम्हारे पास? माइंस हमारे पास है। झारखंड के पास है, छत्तीसगढ़ के पास है, मध्य प्रदेश के पास है, उड़ीसा के पास है। आपके पास कौन सी माइंस है? रिफाइनरी यदि Reliance ने बैठाई है, एसआर ने रिफाइनरी बैठाई तो वो गुजरात में रिफाइनरी बैठाई है। सारी इंडस्ट्री जो है सेमीकंडक्टर की भी इंडस्ट्री है तो गुजरात में आ रही है। आप जो है लाटसाही कर रहे हो और ऊपर से जो है आप हमारा दोहन करके शोषण करके टैक्स पेयर करते हो और यदि आप में ज्यादा हिम्मत है तो हिम्मत है तो आप हिंदी भाषी को मारते हो तो उर्दू भाषी को भी मारो। तमिलियन को भी मारो। आप जो है तेलुगु वाले को भी मारो। आप जो इस तरह की घटिया हरकत कर रहे हो और मैंने हमेशा कहा है कि जब अपने घर में हो, महाराष्ट्र में हो यदि बहुत बड़े बॉस हो तो चलो बिहार चलो उत्तर प्रदेश। चलो तमिलनाडु तुमको पटक-पटक के मारेंगे। यह एनार्की जो है नहीं चलेगी। हम मराठी का सम्मान करते हैं। मराठी एक आदरणीय भाषा है। बीजेपी सांसद के बयान पर शिवसेना के सांसद संजय राउत ने पलटवार किया। उन्होंने कहा कि यह दुबे है कौन? मैं यहां के हिंदी भाषी नेताओं से अपील करता हूं कि दुबे के बयान की निंदा करें। इससे पहले उद्धव ठाकरे ने विवादित टिप्पणी को लेकर निशिकांत को लकड़बग्गा भी करार दिया था। संजय राउत का जरा बयान सुनिए कि दुबे है कौन? दुबे को क्या अथॉरिटी दिया है क्या यहां के हिंदी भाषिकों ने? वहां बैठकर आप बात करते हो। यहां के जो हिंदी भाषिक नेता है, मैं उनसे अपील करता हूं। दुबे का जो वक्तव्य है उसका निषेध करो आप। धिक्कार करो उसका बताइए आप झूठ बोल रहे हो तो मैं कहूंगा कि आप महाराष्ट्र की मिट्टी में मिलजुल गए हो कौन है दुबे आपका आपका दुबे कौन लगता है ये फालतू आदमी है ये ये बोगस डिग्री जैसा गुरु वैसा चेला है मुझे आश्चर्य है महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उनके पूरे कैबिनेट का एक आदमी भारतीय जनता पार्टी का सांसद वहां बैठकर महाराष्ट्र के बारे में मराठी आदमी के बारे में मराठी मानुष के बारे बारे में घटिया बातें करता है और आप चुप बैठे हो। आप कौन से मुख्यमंत्री हो? आपको छत्रपति शिवाजी महाराज और बाला साहब ठाकरे का नाम लेने का अधिकार नहीं है भाई। एकनाथ शिंद अपने आप को डुप्लीकेट शिवसेना का नेता मानता है ना। दाढ़ी पे हाथ घुमाते फिरता है। निकाल दो दाढ़ी आपकी। अगर दाढ़ी में दम नहीं है ना तो दाढ़ी काट कर घूम रहे तो हम आपकी दाढ़ी काट देंगे। क्या चल रहा है आपका? वहीं इस बीच बीजेपी के सांसद दिनेश लाल निरहुआ की भी तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। उनका बयान भी सुनने वाला है। मुझे लगता है कि यह विवाद नहीं होना चाहिए। हिंदी जो है वो माध्यम है कम्युनिकेशन का और राष्ट्रीय भाषा इसीलिए है कि यहां अलग-अलग राज्य में लोग अलग-अलग भाषा बोलते हैं। सबकी अपनी-अपनी मातृभाषा है। जैसे मेरी भोजपुरी है, किसी की मराठी है, किसी की तमिल है, तेलुगु है, कन्नड़ है, मलयालम है, बंगाली है, उड़िया है। अलग-अलग क्षेत्रीय भाषा है। पर हमको आपस में कम्युनिकेट करने के लिए कम्युनिकेशन के लिए हिंदी हमारा एक ऐसा माध्यम है ऐसी भाषा है जिससे पूरे देश के लोग एक दूसरे को समझ पाते हैं बोल पाते हैं इसके लिए है तो इस पे किसी प्रकार का विवाद नहीं होना चाहिए और जो लोग कर रहे हैं इसके ऊपर राजनीति वो गलत कर रहे हैं ये राजनीति नहीं होनी चाहिए भाषा विवाद का जहर देश के लिए खतरे से कम नहीं और इसका असर उन लोगों पर ज्यादा हो रहा है जो महाराष्ट्र में अपनी रोजी रोटी के लिए गए राज्य में एक बड़ी हिंदी भाषा आबादी होने के बावजूद हिंदी को लेकर विरोध का अक्सर इस तरह से खड़े हो जाना निश्चित तौर पर चिंताजनक है। इसकी कोई वजह वैसे नहीं नजर आती लेकिन हां सिर्फ राजनीति और राजनीतिज्ञों की वजह से यह मराठी पहचान वाला जो विवाद है यह खड़े होता दिखाई पड़ता है। स्थानीय राजनीतिक दल इसे मुद्दा बना रहे हैं और महाराष्ट्र में यह हिंदी विरोध आज की बात नहीं बल्कि 50 के दशक से चली आ रही है। यह समस्या ये विवाद ये भाषा को लेकर तकरार आज की नहीं है। लेकिन अब बड़ी बात यह है कि वो बड़े लोग जो कि हिंदी भाषी राज्यों से जाकर वहां मजबूत स्थिति में दिखाई पड़ते हैं। फिर चाहे वह अभिनेता हो, चाहे पॉलिटिशियंस हो, चाहे फिर कोई बड़ा उद्योगपति, उनसे सवाल नहीं होता। उनके ऊपर यह प्रेशर नहीं डाला जाता कि आप हिंदी बोलिए या मराठी बोलिए। लेकिन हिंदी भाषी राज्यों से गए वो मजदूर, वो आम आदमी जो अपनी जीविका के लिए, अपनी रोजीोटी के लिए महाराष्ट्र की जमीन पर गया है, वहां पर उसे इस तरह की चीजों का सामना करना पड़ता है। यही सबसे बड़ी विडंबना है। महाराष्ट्र एक बार फिर सुलग रहा है। महाराष्ट्र में एक बार फिर मराठी बनाम हिंदी की लड़ाई दिखाई पड़ रही है। यह विवाद आम लोगों के बीच उन राजनीतिज्ञों ने छेड़ा है या यूं कहें कि छोड़ा है कि यह विवाद अब आम लोगों के बीच के लिए एक समस्या जैसा दिखाई पड़ रहा है। महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी भाषा को लेकर छिड़ा विवाद सीमाओं को लांगकर देश भर में अब राजनीतिक मुद्दा बन रहा है। ऑफरिंग अ यूनिक फ्यूचर रेडी कोर्सेस एंड एक्सपीरियंस बेस्ड लर्निंग सेज यूनिवर्सिटी इज वेयर वी ट्रांसफॉर्म पैशन इन प्रोफेशन। दो दशक बाद ठाकरे परिवार यानी राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आए और विषय था मराठी अस्मिता। मराठी अस्मिता को बचाने के नाम पर यह ठाकरे बंधु एक हो गए। इन दोनों के एक होने के साथ ही राजनीतिक समीकरण भी बदला और अपनी राजनीतिक विरासत बचाने के लिए एक बड़ा बयान इस तरह से दिया गया कि अब वह बयान एक फसाद का रूप ले रहा है। एक राज्य की राजनीति में बदलाव को लेकर फसाद शुरू हुआ है और दूसरा भाषा को लेकर राज्य में आग लगी हुई है। वाद-विवाद प्रतिक्रियाएं एक के बाद एक दिखाई पड़ रही हैं। महाराष्ट्र में हिंदी भाषा विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब राज्य सरकार के शिक्षा विभाग ने स्कूलों में कक्षा एक से तीसरी तक भाषा के रूप में हिंदी सिखाने का फैसला किया। अब तक राज्य में मराठी और अंग्रेजी ही पहली कक्षा से सिखाई जाती थी। जैसे ही यह फैसला सामने आया, महाराष्ट्र की सियासत गमा गई। विवाद शुरू होते ही पहले तो सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार जो नई शिक्षा नीति लेकर आई है उसी में त्रिभाषा सूत्र यानी पहली कक्षा से ही तीन भाषाएं पढ़ाने का प्रावधान है। फिर भाषा और शिक्षा के कई विशेषज्ञों ने इसका विरोध भी किया और कहा कि पहली कक्षा के बच्चों के लिए यह आसान नहीं होगा। शिवसेना जो उद्धव ठाकरे की है और मनसे जैसी पार्टियों ने इसका विरोध किया। शिक्षा से जुड़े कई संगठनों और राजनीतिक दलों ने भी आंदोलन शुरू कर दिए। इसके बाद राज्य सरकार ने एक कदम पीछे खींचते हुए हिंदी का अनिवार्य होना रद्द कर दिया। यह भी कहा गया कि अगर कुछ स्टूडेंट्स तीसरी भाषा चुनना चाहते हैं तो वह चुन सकते हैं। लेकिन इससे भी विरोध पर कोई असर नहीं दिखाई पड़ा। सरकार भले ही बैकफुट पर चली गई इस मुद्दे पर लेकिन विवाद जस का तस। भाषा के मुद्दे ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक अहम तस्वीर पेश की। लेकिन इसके ठीक बाद जैसे ही ठाकरे ब्रदर्स एक साथ आए मराठी को लेकर मामला गरमा गया। इस बीच एक बयान भी सामने आया कि बेवजह किसी को मत मारो। लेकिन अगर ज्यादा कोई नाटक करता है तो उसके कान के नीचे बजाओ। अगली बार जब किसी को पीटो तो उसका वीडियो मत बनाओ। आप कल्पना करेंगे कि यह बयान राज ठाकरे ने दिया। इस बयान के बाद से जो तूफान आया वह इन तस्वीरों में दिखाई पड़ रहा है। लोग सड़कों पर हैं, भिड़ते दिख रहे हैं, लड़ते दिख रहे हैं। देश की राजनीति में राज ठाकरे के इस बयान ने एक नया तूफान, एक नई बहस को जन्म दे दिया है। इसको लेकर कई जगह मारपीट के मामले भी सामने आए। एक्शन भी हो रहे हैं। लेकिन सवाल यह कि यह आग कब बुझेगी? इस पूरे मामले पर महाराष्ट्र को सुलगता देख सीएम देवेंद्र फडनवीस ने सख्त कदम उठाने की बात कही और इस पूरे मामले में सभी को चेताया। जरा सुनिए सीएम देवेंद्र फडनवीस का बयान। मैं बहुत स्पष्ट शब्दों में बताना चाहता हूं। महाराष्ट्र में मराठी भाषा का अभिमान रखना यह कोई गलत बात नहीं है। लेकिन भाषा के चलते अगर कोई गुंडागर्दी करेगा तो इसको हम सहन नहीं करने वाले। कोई अगर भाषा के आधार पर मारपीट करेगा तो यह सहन नहीं किया जाएगा। जिस प्रकार की घटना ह